यूपी के लखनऊ स्थित अपोलो हॉस्पिटल की सीनियर डर्मेटोलॉजिस्ट डॉ. प्रगति गोगिया जैन ने बताया कि चमकदार और स्टाइलिश दिखने वाले कपड़े कई बार स्किन रैशेज और एलर्जी की वजह बन जाते हैं. मेडिकल भाषा में इस परेशानी को टेक्सटाइल डाई डर्मेटाइटिस कहा जाता है. आजकल जो कपड़े बाजार में मिलते हैं, उनमें अक्सर एजो डाई, डिस्पर्स डाई, फार्माल्डिहाइड, हैवी मेटल्स और सॉल्वेंट जैसे हानिकारक केमिकल्स होते हैं. ये केमिकल त्वचा की प्राकृतिक सुरक्षा को कमजोर करते हैं, जिससे रैशेज, जलन और कभी-कभी केमिकल बर्न तक हो सकते हैं.
डॉक्टर के मुताबिक बरसात के मौसम में सबसे सुरक्षित कपड़े वे होते हैं जो जल्दी सूखने वाले, हल्के और सांस लेने योग्य फैब्रिक से बने हों. नायलॉन, पॉलिएस्टर और रेयॉन जैसे सिंथेटिक कपड़े बरसात के लिए बेहतर माने जाते हैं, क्योंकि ये पानी नहीं सोखते और जल्दी सूख जाते हैं, जिससे फंगल इन्फेक्शन या ठंड लगने का खतरा कम होता है. वहीं कॉटन या लिनन जैसे नैचुरल फैब्रिक बारिश में भीगने पर भारी हो जाते हैं और देर से सूखते हैं, जिससे त्वचा पर रैशेज या फंगल संक्रमण की संभावना बढ़ जाती है. इसके अलावा स्किन फिट कपड़ों से बचना चाहिए क्योंकि भीगने पर वे त्वचा से चिपकते हैं और चलने-फिरने में असहजता पैदा कर सकते हैं. मानसून में हल्के, ढीले और जल्दी सूखने वाले कपड़े पहनना सबसे सुरक्षित और व्यावहारिक विकल्प होता है.
सिंथेटिक डाई से स्किन प्रॉब्लम्स को देखते हुए अब बाजार में नेचुरल कलर्स से बनी डाई भी आने लगी है. एएमए हर्बल के सीईओ यावर अली शाह के मुताबिक कई कंपनियां अब नेचुरल डाई बना रही हैं. इंडिगो समेत 10 से ज्यादा प्रकार के प्लांट-बेस्ड डाई कलर्स डेवलप किए जा रहे हैं. इनका उद्देश्य न सिर्फ लोगों को हेल्दी विकल्प देना है, बल्कि पर्यावरण की सेहत का भी ध्यान रखना है. प्राकृतिक डाई न सिर्फ स्किन-फ्रेंडली होती है, बल्कि टिकाऊ और स्थायी रंगत भी देती है, जो आर्टिफिशल रंगों से किसी मायने में कम नहीं हैं. जिन लोगों को सिंथेटिक कलर्स से बने कपड़ों से दिक्कत है, वे नेचुरल डाई वाले कपड़े यूज कर सकते हैं.
Author: अमित उपाध्याय Source Link :https://hindi.news18.com/news/lifestyle/health-why-artificial-fabric-dyes-can-harm-your-skin-in-monsoon-doctor-explains-clothing-colors-side-effects-9384762.html
Publish Date: 2025-07-10 14:23:58