- Hindi News
- National
- TMS Martyrs’ Day Program Today In Dharmatalla West Bengal: Trinamool’s Election Campaign Today, Issue Bengali Language, Bengali Identity
कोलकाता28 मिनट पहले
- कॉपी लिंक

किस्से और करिश्मे के दौर में राजनीति को रंग से पहचाने तो, पश्चिम बंगाल में सरकारी बसों से लेकर सरकारी बिल्डिंग्स और फ्लाई ओवर्स तक सब आसमानी और सफेद रंग में दिखेगा। पिछले 13 साल से ज्यादा समय से बंगाल में यही रंग छाया है। वाम मोर्चा के 34 साल के एकछत्र राज का ‘लाल किला’ भेदकर 21 मई 2011 को सीएम बनीं ममता बनर्जी ने बंगाल को इस नए रंग में रंगा है।
तृणमूल कांग्रेस जहां इसे शांति और सरलता का प्रतीक बताती है, वहीं विपक्ष इसे जनता के पैसे की बर्बादी कहता है। बहरहाल, इन दिनों राजधानी कोलकाता की सड़कें तृणमूल कांग्रेस के तिरंगे से अटी पड़ी हैं।
दरअसल, सोमवार को पार्टी का सबसे बड़ा वार्षिक आयोजन ‘शहीद दिवस’ होना है। अगले साल मई में प्रस्तावित विधानसभा चुनाव से पहले यह शहीदी दिवस तृणमूल कांग्रेस की ओर से चुनावी शंखनाद ही है। इसके लिए पार्टी कार्यकर्ता प्रदेशभर में छोटी–बड़ी रैली और संपर्क अभियान चला रहे हैं।
तृणमूल बांग्ला भाषा और बंगाली मानुष की अस्मिता को सबसे बड़ा मुद्दा बना रही है।
तृणमूल नेताओं से बातचीत और शहर की दो रैली सुनने से साफ है कि तृणमूल बांग्ला भाषा और बंगाली मानुष की अस्मिता को सबसे बड़ा मुद्दा बना रही है। प्रवासी बांग्ला भाषियों पर कथित अत्याचार के मुद्दे पर चार दिन पहले ही ममता बनर्जी ने कोलकाता में मार्च निकाला।
ऐसे में 2011 में ‘मां, माटी, मानुष’ और 2021 में ‘खेला होबे’ के नारे के साथ सत्ता में आईं ममता इस बार भाषा और बंगाली पहचान को लेकर चुनावी मैदान में उतरेंगी। वहीं, बिहार में चल रहे वोटर लिस्ट रिवीजन की गर्मी भी बंगाल में दिखने लगी है। अभी भले यहां इसकी शुरुआत न हुई हो, लेकिन निर्वाचन आयोग ने इसे देशभर में करवाने की घोषणा करके बेचैनी बढ़ा दी है।
दूसरी ओर, ममता इसे बैकडोर से एनआरसी बताकर न लागू करने की घोषणा कर चुकी हैं। ऐसे में सबकी निगाह सोमवार के कार्यक्रम पर है, जिसमें ममता अगले चुनाव के लिए पार्टी का विजन सामने रखेंगी।
सड़क, सफाई, भ्रष्टाचार जैसी समस्याएं हैं, लेकिन चेहरे की लड़ाई में ममता आगे
सियालदह स्टेशन के बाहर मिले टैक्सी चालक सुभोजीत कहते हैं कि गंदगी, खराब सड़कें, रोजगार, भ्रष्टाचार जैसी समस्याएं यहां भी हैं। लोग बदलाव चाहते हैं, लेकिन उसके लिए विकल्प नहीं है। धर्मतल्ला पर मिले एमसीए छात्र सौरभ सिंह मूलत: यूपी के हैं, पर उनका परिवार कई साल पहले कोलकाता आकर बस गया था। सौरभ दावा करते हैं कि बांग्लादेशी घुसपैठ और मुस्लिम तुष्टीकरण बहुत बढ़ा है। सरकार ऐसे लोगों को बढ़ावा देती है।
दूसरी ओर, एलएलबी छा अनन्य इससे सहमत नहीं दिखते। उनका कहना है कि घुसपैठ रोकना केंद्र की जिम्मेदारी है। दूसरी ओर, बंगाल की राजनीतिक को चार दशक से कवर कर रहे वरिष्ठ पत्रकार जयंत शाॅ का मानना है कि राजनीति में फेस वैल्यू अहम है। इसमें ममता के सामने अभी राज्य में कोई नहीं है।
ज्योति बसु जब तक सीएम रहे, उनका कोई विकल्प नहीं बन सका। ऐसा ही ममता के साथ है। भाजपा उनके सामने विकल्प बनने वाला चेहरा नहीं पेश कर सकी हैं। लोगों को तृणमूल से शिकायत है, लेकिन वे पार्टी को बुरा–भला कहते हैं। ममता को लेकर अभी ऐसा नहीं दिखता।
ममता इस बार भाषा और बंगाली पहचान को लेकर चुनावी मैदान में उतरेंगी।
आरजीकर, चुनाव बाद हिंसा जैसे मामलों से तृणमूल को कुछ झटका जरूर लगा है, लेकिन उनको पता है कि चुनाव कैसे जीता जाता है। धर्मतल्ला में कार्यक्रम स्थल पर मिले एक वरिष्ठ टीवी पत्रकार कहते हैं कि वाममोर्चा और कांग्रेस सिर्फ प्रेस कॉन्फ्रेंस में दिखती है। आरजी कर आंदोलन ने जरूर माकपा कैडर को रिचार्ज किया, लेकिन अभी उनमें इतनी एनर्जी नहीं आई है कि वे मेन स्ट्रीम में आ सकें।
ममता को हटाने के लिए उनसे ज्यादा ‘बंगाली और उनसे ज्यादा जुझारू’ लीडरशिप लानी होगी।
भाजपा ने हार मान ली, हमारा लक्ष्य अब उसे 50 से नीचे लाने का: तृणमूल
धर्मतल्ला के पास उत्तम मंच सभागार में पार्टी के कार्यक्रम के बाद तृणमूल प्रवक्ता रिजू दत्ता ने कहा, भाजपा बांग्लाभाषी लोगों को निशाना बना रही है। बांग्ला अस्मिता के लिए हमें भाजपा को सबक सिखाना है।
तुष्टिकरण के आरोप पर, तृणमूल आईटी सेल के महासचिव नीलांजन दास ने कहा, बंगाली लोगों के लिए लिए राम देवता हैं। भगवान राम, जिनकी आराध्य मां दुर्गा और मां काली थीं। भाजपा के लिए भगवान राम का नाम सिर्फ चुनावी नारा है। पर, बंगाल में भाजपा की कम्युनल राजनीति नहीं चलेगी।
पिछले चुनाव में ‘खेला होबे’ नारा देने वाले तृणमूल आईटी सेल के अध्यक्ष देवांशु भट्टाचार्य कहते हैं कि भाजपा नैरेटिव को लेकर चुनाव हार गई है। यही कारण है कि जयश्रीराम का नारा लगाने वाले प्रधानमंत्री जी और भाजपा के बाकी नेता अब बंगाल में आने पर जय मां दुर्गा, जय मां काली का उद्घोष कर रहे हैं। अब हमारा लक्ष्य विधानसभा चुनाव में भाजपा को 50 से नीचे लाने का है। बांग्ला भाषियों की प्रताड़ना का यही सही जवाब होगा।
टीएमसी का लक्ष्य विधानसभा चुनाव में भाजपा को 50 से नीचे लाने का है।
बिहार की तर्ज पर वोटर लिस्ट रिवीजन के सवाल पर नीलांजन ने कहा, यह भाजपा का बैकडोर से एनआरसी लाने की साजिश है। ममता दीदी यह होने नहीं देंगी। तृणमूल सांसद इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में केस लड़ रही हैं, मुख्यमंत्री ने खुद पैदल मार्च किया। फिर भी अगर निर्वाचन आयोग ने एकतरफा फैसला लिया तो, हम आंदोलन करेंगे।
घुसपैठियों को शह देने के सवाल पर तृणमूल नेता कहते हैं कि बॉर्डर केंद्र के पास है। उसे रोकना चाहिए। लोग कैसे अंदर आ रहे हैं? भ्रष्टाचार, महिलाओं के खिलाफ अपराध, गंदगी, उद्योगों की कमी के सवाल पर तृणमूल के एक नेता कहते हैं कि ये समस्याएं हैं। पर इनको ठीक करने के लिए बेहतर तृणमूल कांग्रेस की जरूरत है।
बांग्ला अस्मिता नहीं, यह बांग्लाभाषी हिंदू अस्मिता की लड़ाई है: भाजपा
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दुर्गापुर (आसनसोल) रैली के बाद भाजपा कार्यालय में बैठकों को दौर बढ़ गया है। संगठन को चुनावी मोड में लाने के लिए बैठकों का दौर जारी है। ऐसी ही एक बैठक से निकले केंद्रीय राज्यमंत्री और बंगाल भाजपा के पूर्व अध्यक्ष सुकांत मजूमदार ने कहा, बंगाल ममता सरकार की विदाई के लिए तैयार है।
भाषा अस्मिता पर पूछे सवाल पर मजूमदार ने कहा– तृणमूल सांसद शत्रुघ्न सिन्हा, कीर्ति आजाद, यूसुफ पठान बांग्ला बोलते हैं? भाजपा सांसद लॉकेट चटर्जी कहती हैं कि पूरे देश में जहां भी बंगाली लोग हैं, वहां वे अपने त्योहार, संस्कृति का आजादी से पालन कर रहे हैं। ममता रैली करती हैं बांग्ला अस्मिता के लिए, लेकिन भाषण हिंदी में देती हैं।
बिहार की तरह वोटर लिस्ट रिवीजन के सवाल पर लॉकेट कहती हैं। बंगाल में भी यह होना चाहिए। यहां सही से जांच तो हो तो बिहार से कई गुना ज्यादा अवैध लोग मिलेंगे। जांच की बात शुरू होने के बाद ही तो ममता को बांग्ला अस्मिता याद आई है। ममता के सामने पार्टी का फेस कौन होगा, इस सवाल पर लॉकेट कहती हैं, फेस भाजपा है, मोदी जी हैं।
दिल्ली में कोई फेस नहीं था, हम जीते। बंगाल भी जीतेंगे। वहीं, बंगाल भाजपा के पूर्व उपाध्यक्ष रीतेश तिवारी घुसपैठ को सबसे बड़ा मुद्दा और खतरा बताते हैं। उन्होंने कहा, यह चुनाव बंगाली अस्मिता का नहीं, बांग्लाभाषी हिंदुओं की अस्मिता का है।
तृणमूल कांग्रेस की तीन बड़ी चुनौतियां
1.भ्रष्टाचार के आरोप
शिक्षक भर्ती, एसएससी घोटाला और पंचायत धन अनियमितताओं में पार्टी नेताओं की गिरफ्तारी और कोर्ट की फटकार ने पार्टी को बैकफुट पर ला दिया है।
2.घुसपैठ और तुष्टिकरण का मुद्दा
भाजपा का आरोप है कि टीएमसी बांग्लादेशी घुसपैठियों को संरक्षण देती है और मुस्लिम वोट बैंक के लिए तुष्टिकरण की राजनीति करती है।
3. महिला सुरक्षा और कानून-व्यवस्था
संदेशखाली, मुर्शिदाबाद हिंसा, आरजी कर अस्पताल और लॉ कॉलेज की घटनाएं महिला सुरक्षा और प्रशासनिक नियंत्रण पर गंभीर सवाल खड़े कर रही हैं।
भाजपा की तीन प्रमुख चुनौतियां
1. ममता बनर्जी के समकक्ष चेहरा नहीं
भाजपा के पास बंगाल में व्यापक वोट बेस है, लेकिन अब तक ऐसा कोई स्थानीय चेहरा सामने नहीं आया जो ममता का राजनीतिक विकल्प बन सके।
2. ‘बाहरी पार्टी’ की छवि
तृणमूल भाजपा को बंगाल के बाहर की पार्टी बताकर स्थानीय अस्मिता के मुद्दे को उभारती रही है। भाजपा में दूसरे राज्यों के नेताओं की भूमिका पर सवाल उठते हैं।
3. संगठन में अंतर्विरोध
भाजपा में टीएमसी और अन्य दलों से आए नेताओं को लेकर पुराने कैडर में असंतोष है। इससे जमीनी स्तर पर एकजुटता कमजोर पड़ती है।
1993 में पुलिस फायरिंग में मारे गए 13 कांग्रेस कार्यकर्ता की याद में शहीद दिवस
‘शहीद दिवस’ 21 जुलाई 1993 को मारे गए 13 कांग्रेस कार्यकर्ता की याद में मनाया जाता है। तब युवक कांग्रेस की प्रदेश अध्यक्ष रहीं ममता बनर्जी के नेतृत्व में मतदान के लिए पहचान पत्र अनिवार्य करने की मांग पर प्रदर्शन हुआ। विधानसभा मार्च कर रहे प्रदर्शनकारियों पर पुलिस ने गोली चला दी। तब राज्य में ज्योति बसु के नेतृत्व वाली माकपा सरकार थी। तब से यह आयोजन हाे रहा है।
Author: Source :www.bhaskar.com
Publish Date: 2025-07-23 20:06:43