The film raises questions on the dark truths prevalent in the society with fear, mystery and thinking | मूवी रिव्यू- निकिता रॉय,: डर, रहस्य और सोच के साथ समाज में फैली काली सच्चाइयों पर सवाल उठाती है फिल्म

51 मिनट पहलेलेखक: आशीष तिवारी

  • कॉपी लिंक

‘निकिता रॉय’ सिर्फ एक डराने वाली फिल्म नहीं, बल्कि ये उन कहानियों में से है जो सिनेमाघर से निकलने के बाद भी आपके जेहन में चलती रहती है। कुश सिन्हा के निर्देशन में बनी यह फिल्म आज सिनेमाघरों में रिलीज हो चुकी है। इस फिल्म में सोनाक्षी सिन्हा, परेश रावल, अर्जुन रामपाल और सुहैल नैयर की अहम भूमिका है। इस फिल्म की लेंथ 1 घंटा 54 मिनट है। दैनिक भास्कर ने इस फिल्म को 5 में से 3.5 स्टार की रेटिंग दी है।

फिल्म की कहानी कैसी है?

कहानी की शुरुआत अर्जुन रामपाल के किरदार से होती है, जो अंदर ही अंदर किसी अनजाने डर से जूझ रहा है। धीरे-धीरे स्क्रीन पर जो माहौल बनता है, वो दर्शक को अपने साथ खींच लेता है। यह हॉरर का वो रूप है जहां चीखें नहीं, सन्नाटा डराता है। फिल्म एक सामाजिक मुद्दे,अंधविश्वास को थ्रिलर के दायरे में लाकर रखती है और एक ऐसी लड़की की जद्दोजहद को दिखाती है जो झूठे बाबाओं के खिलाफ लड़ना चाहती है, लेकिन खुद ही उस चक्रव्यूह में उलझ जाती है।

स्टारकास्ट की एक्टिंग कैसी है?

सोनाक्षी सिन्हा ने ‘निकिता रॉय’ के किरदार में जो गहराई और गंभीरता दिखाई है, वो उनके करियर की सबसे मैच्योर परफॉर्मेंस में से एक है। परेश रावल का बाबा अमरदेव का किरदार आपको परेशान कर देगा। मुस्कुराहट के पीछे छुपी क्रूरता और चुप्पी में छिपा डर उन्हें फिल्म का सबसे रियल विलेन बनाता है।

सुहैल नैयर और सोनाक्षी के बीच का रिश्ता फिल्म को इमोशनल थ्रेड देता है। वहीं, अर्जुन रामपाल की स्क्रीन प्रेजेंस भले ही सीमित रही हो, लेकिन उनकी मौजूदगी कहानी में ठहराव लाती है,काश उन्हें थोड़ी और स्क्रीन टाइम दी जाती।

फिल्म का डायरेक्शन और तकनीकी पक्ष कैसा है?

बतौर निर्देशक कुश सिन्हा का यह डेब्यू फिल्म है, लेकिन उनकी कहानी कहने की समझ काफी मैच्योर दिखती है। डर पैदा करने के लिए उन्होंने पारंपरिक हॉरर ट्रिक्स का सहारा नहीं लिया, न जोरदार बैकग्राउंड म्यूजिक, न अचानक उभरते चेहरों से सस्ते डर। बल्कि उन्होंने असली डर को माहौल, कैमरा मूवमेंट और स्क्रिप्ट के जरिये महसूस कराया है।पवन कृपलानी की लिखी स्क्रिप्ट का स्क्रीन पर ट्रांसलेशन काफी संतुलित है। कहानी में कोई अतिरिक्त नाटक नहीं, न ही मेलोड्रामा। बोगदाना ऑर्लेनोवा की सिनेमैटोग्राफी ने हर फ्रेम को गहराई दी है। धुंध, रोशनी और साये—सब कुछ मिलकर दर्शकों को फिल्म का हिस्सा बनाते हैं। एडिटिंग थोड़ी टाइट हो सकती थी, खासकर पहला हाफ कुछ जगह खिंचता है।

फिल्म का म्यूजिक कैसा है?

फिल्म में गाने बेहद कम हैं और यही इसकी खासियत भी है। बैकग्राउंड स्कोर ने बिना ओवरपावर किए कहानी को संबल दिया है। खासकर क्लाइमेक्स सीन में म्यूजिक और साउंड डिजाइन डर को साइलेंस से ज्यादा घातक बनाते हैं।

फाइनल वर्डिक्ट, देखे या नहीं?

अगर आप ऐसी थ्रिलर फिल्म देखना चाहते हैं जो सिर्फ डराए नहीं, बल्कि समाज में फैली काली सच्चाइयों पर सवाल भी उठाए, तो यह फिल्म आपके लिए है। सोनाक्षी की गंभीर एक्टिंग, परेश रावल की मौजूदगी और कुश सिन्हा का सधा हुआ डायरेक्शन इसे खास बनाता है।

Author: Source Link :www.bhaskar.com

Publish Date: 2025-07-18 11:09:52

Kiara Advani ki latest photo तिरुपति मंदिर के बारे में महत्वपूर्ण तथ्य और चमत्कार प्रेमानंद जी महाराज की जीवनी: भक्ति, साधना और अध्यात्म का मार्ग नवरात्रि के 9 देवी रूप: शक्ति और भक्ति का अनोखा संगम पितृ पक्ष आज से शुरू, जानें श्राद्ध करने की तिथियां, नियम और विधि ! Glamorous look of Rashmika Mandanna Devara: Jr. NTR’s Next Blockbuster – Everything You Need to Know! गणेश चतुर्थी के १० मंत्रों का जाप करने से सारे कष्ट ख़त्म हो जाएगें . Jaden Newman MMS Leak Controversy अजीत डोभाल, जिन्हें “भारत के जेम्स बॉन्ड”! जापानी आदमी 30 मिनट सोता है दूध शाकाहारी या मांसाहारी Tamannaah Bhatia Ki Latest Photos Aur Movies श्री कृष्ण के मन मोहन रूप कोलेस्ट्रॉल कम करने के 10 प्रमुख उपाय What is Unified Pension Scheme? 10 कारण क्यों एम एस धोनी हैं भारतीय क्रिकेट के लीजेंड जर्मन गोलकीपर मैनुअल नॉयर संन्यास लेने की घोषणा की युवराज सिंह का आईपीएल करियर: सबसे महंगा खिलाड़ी रोजाना साइकिलिंग करने के फायदे:वजन और मानसिक स्वास्थ्य के लिए क्यों है जरूरी?