President Draupadi Murmu Vs Supreme Court; President Governor Bills Deadline Controversy | राज्यों के भेजे विधेयकों को मंजूरी देने की डेडलाइन केस: राष्ट्रपति के 14 सवालों पर सुनवाई करेगी सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ; केंद्र-राज्यों को नोटिस

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नई दिल्ली1 घंटे पहले

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गवर्नर-प्रेसिडेंट के लिए डेडलाइन को लेकर राष्ट्रपति मुर्मू ने 15 मई को सुप्रीम कोर्ट से 14 सवाल पूछे थे। (फाइल) - Dainik Bhaskar

गवर्नर-प्रेसिडेंट के लिए डेडलाइन को लेकर राष्ट्रपति मुर्मू ने 15 मई को सुप्रीम कोर्ट से 14 सवाल पूछे थे। (फाइल)

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क्या राष्ट्रपति और राज्यपाल के जरिए विधानसभा से पारित विधेयकों पर निर्णय लेने के लिए न्यायिक आदेशों के तहत कोई समय-सीमा निर्धारित की जा सकती है?

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22 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट की 5 सदस्यीय संविधान बेंच इसकी जांच के लिए तैयार हुई। कोर्ट ने केंद्र और सभी राज्यों को नोटिस जारी किया है। अगली सुनवाई 29 जुलाई को होगी।

बेंच की अध्यक्षता सीजेआई बीआर गवई कर रहे हैं। उनके साथ जस्टिस विक्रम नाथ, सूर्यकांत, पीएस नरसिंह और अतुल चंदुरकर शामिल हैं।

यह बहस राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु की ओर से 13 मई को सुप्रीम कोर्ट से मांगी गई सलाह के बाद शुरू हुई, जिसमें उन्होंने 14 संवैधानिक सवाल उठाए।

इससे पहले 8 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की बेंच ने आर्टिकल 142 का उपयोग करते हुए कहा था कि राष्ट्रपति को 3 माह के भीतर निर्णय देना चाहिए।

मामला सुप्रीम कोर्ट ने 8 अप्रैल के फैसले से जुड़ा है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के आर्टिकल 142 का इस्तेमाल करते हुए राष्ट्रपति और राज्यपाल के लिए विधेयक पारित करने की समयसीमा तय की थी।

सुप्रीम कोर्ट का 8 अप्रैल का फैसला। कोर्ट ने तमिलनाडु गर्वनर की राज्य सरकार के 10 जरूरी बिलों पर रोक को अवैध बताया था।

सुप्रीम कोर्ट का 8 अप्रैल का फैसला। कोर्ट ने तमिलनाडु गर्वनर की राज्य सरकार के 10 जरूरी बिलों पर रोक को अवैध बताया था।

पहले जानिए यह मामला शुरू कहां से हुआ…

दरअसल, तमिलनाडु विधानसभा में 2020 से 2023 के बीच 12 विधेयक पारित किए गए। इन्हें मंजूरी के लिए राज्यपाल आरएन रवि के पास भेजा गया। उन्होंने विधेयकों पर कोई कार्रवाई नहीं की, दबाकर रख लिया।

अक्टूबर 2023 में तमिलनाडु सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से गुहार लगाई। इसके बाद राज्यपाल ने 10 विधेयक बिना साइन किए लौटा दिए और 2 विधेयकों को राष्ट्रपति के पास विचार के लिए भेज दिया। सरकार ने 10 विधेयक दोबारा पारित कर राज्यपाल के पास भेजे। राज्यपाल ने इस बार इन्हें राष्ट्रपति के पास भेज दिया।

सुप्रीम कोर्ट ने 8 अप्रैल 2025 को एक अहम फैसले में राज्यपाल के इस तरह विधेयक अटकाने को अवैध बता दिया। जस्टिस जेबी पारदीवाला की बेंच ने राज्यपाल से कहा- ‘आप संविधान से चलें, पार्टियों की मर्जी से नहीं।’

राज्यपाल ने ‘ईमानदारी’ से काम नहीं किया। इसलिए कोर्ट ने आदेश दिया कि इन 10 विधेयकों को पारित माना जाए। यह पहली बार था जब राज्यपाल की मंजूरी के बिना विधेयक पारित हो गए।

संविधान में निर्धारित नहीं विधेयक की मंजूरी-नामंजूरी का समय संविधान में यह निर्धारित नहीं किया गया है कि विधानसभा से पारित विधेयक को राज्यपाल या राष्ट्रपति को कितने दिनों के भीतर मंजूरी या नामंजूरी देनी होगी। संविधान में सिर्फ इतना लिखा है कि उन्हें ‘जितनी जल्दी हो सके’ फैसला लेना होगा।

सुप्रीम कोर्ट ने इस ‘जितनी जल्दी हो सके’ को डिफाइन किया….

  • अगर राज्य सरकार कोई विधेयक मंजूरी के लिए भेजती है तो राज्यपाल को एक महीने के भीतर कार्रवाई करनी होगी।
  • अगर राज्यपाल विधेयक को राष्ट्रपति के पास भेजते हैं तो राष्ट्रपति के पास भी इस पर फैसला लेने के लिए 3 महीने का ही समय होगा। इससे ज्यादा दिन होने पर उन्हें उचित कारण बताना होगा।
  • अगर राज्यपाल या राष्ट्रपति समय सीमा के भीतर कोई कार्रवाई नहीं करते हैं, तो राज्य सरकार अदालत जा सकती है।

आर्टिकल 143 क्या है?

भारत के संविधान में आर्टिकल 143 के तहत राष्ट्रपति को यह अधिकार मिलता है कि वो सुप्रीम कोर्ट से राय मांग सकते हैं। यह संवैधानिक मुश्किलों को सुलझाने में मदद करता है। इसमें मुख्य रूप से दो तरह की राय के लिए अलग-अलग क्लॉज हैं-

आर्टिकल 143 (1): राष्ट्रपति किसी भी कानूनी या तथ्यात्मक सवाल पर सुप्रीम कोर्ट की राय मांग सकते हैं। यह जरूरी नहीं कि वह सवाल किसी मौजूदा विवाद से जुड़े हों। उदाहरण से समझें तो कोई नया कानून बनाने से पहले उसकी संवैधानिक वैधता पर राय ली जा सकती है।

आर्टिकल 143 (2): अगर कोई विवाद किसी ऐसी संधि, समझौते या अन्य दस्तावेजों से जुड़ा है, जो संविधान लागू होने यानी 26 जनवरी 1950 से पहले से चल रहा था, तो राष्ट्रपति सुप्रीम कोर्ट से उस पर राय मांग सकते हैं।

अब तारीखों में पूरा मामला…

8 अप्रैल: सुप्रीम कोर्ट ने कहा- राज्यपाल के पास कोई वीटो पावर नहीं

जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की बेंच ने कहा था कि राज्यपाल के पास कोई वीटो पावर नहीं है। राज्यपाल के भेजे गए बिल पर राष्ट्रपति को 3 महीने के भीतर फैसला लेना होगा। 15 मई: राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने सुप्रीम कोर्ट से 14 सवाल पूछे

प्रेसिडेंट और गवर्नर के लिए डेडलाइन तय करने पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने आर्टिकल 143 (1) के तहत सुप्रीम कोर्ट से 14 सवाल करते हुए राय मांगी थी।

राष्ट्रपति मुर्मू ने राष्ट्रपति-राज्यपाल की शक्तियों, न्यायिक दखल और समय-सीमा तय करने जैसी बातों पर स्पष्टीकरण मांगा गया था।

राष्ट्रपति ने पूछा था कि संविधान में इस तरह की कोई व्यवस्था ही नहीं है, तो सुप्रीम कोर्ट कैसे राष्ट्रपति-राज्यपाल के लिए बिलों पर मंजूरी की समय सीमा तय करने का फैसला दे सकता है।

गवर्नर की ओर से राष्ट्रपति को भेजे गए बिल पर सुप्रीम कोर्ट के 4 पॉइंट्स

1. बिल पर फैसला लेना होगा: सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अनुच्छेद 201 कहता है कि जब विधानसभा किसी बिल को पास कर दे। उसे राज्यपाल के पास भेजा जाए और राज्यपाल उसे राष्ट्रपति के पास विचार के लिए भेज दे। इस स्थिति में राष्ट्रपति को बिल पर मंजूरी देनी होगी या फिर बताना होगा कि मंजूरी नहीं दे रहे हैं।

2. ज्यूडिशियल रिव्यू होगा: सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि आर्टिकल 201 के तहत राष्ट्रपति का निर्णय की न्यायिक समीक्षा की जा सकती है। अगर बिल में केंद्र सरकार के निर्णय को प्राथमिकता दी गई हो, तो कोर्ट मनमानी या दुर्भावना के आधार पर बिल की समीक्षा करेगा।

अदालत ने कहा कि बिल में राज्य की कैबिनेट को प्राथमिकता दी गई हो और राज्यपाल ने विधेयक को मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह के विपरीत जाकर फैसला किया हो तो कोर्ट के पास बिल की कानूनी रूप से जांच करने का अधिकार होगा।

3. राज्य सरकार को राज्यपाल को कारण बताने होंगे: सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि जब कोई समय-सीमा तय हो, तो वाजिब टाइम लाइन के भीतर फैसला करना चाहिए। राष्ट्रपति को बिल मिलने के 3 महीने के भीतर फैसला लेना अनिवार्य होगा। यदि देरी होती है, तो देरी के कारण बताने होंगे।

4. बिल बार-बार वापस नहीं भेज सकते: अदालत ने कहा कि राष्ट्रपति किसी बिल को राज्य विधानसभा को संशोधन या पुनर्विचार के लिए वापस भेजते हैं। विधानसभा उसे फिर से पास करती है, तो राष्ट्रपति को उस बिल पर फाइनल डिसीजन लेना होगा और बार-बार बिल को लौटाने की प्रक्रिया रोकनी होगी।

17 अप्रैल: धनखड़ बोले- अदालतें राष्ट्रपति को आदेश नहीं दे सकतीं

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने 17 अप्रैल को कहा था कि अदालतें राष्ट्रपति को आदेश नहीं दे सकतीं। संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत कोर्ट को मिला विशेष अधिकार लोकतांत्रिक शक्तियों के खिलाफ 24×7 उपलब्ध न्यूक्लियर मिसाइल बन गया है। जज सुपर पार्लियामेंट की तरह काम कर रहे हैं। पूरी खबर पढ़ें…

18 अप्रैल: सिब्बल बोले- भारत में राष्ट्रपति नाममात्र का मुखिया

राज्यसभा सांसद कपिल सिब्बल ने कि जब कार्यपालिका काम नहीं करेगी तो न्यायपालिका को हस्तक्षेप करना ही पड़ेगा। भारत में राष्ट्रपति नाममात्र का मुखिया है। राष्ट्रपति-राज्यपाल को सरकारों की सलाह पर काम करना होता है। मैं उपराष्ट्रपति की बात सुनकर हैरान हूं, दुखी भी हूं। उन्हें किसी पार्टी की तरफदारी करने वाली बात नहीं करनी चाहिए।’ पूरी खबर पढ़ें…

…………………………… डेडलाइन मामले से जुड़ी ये खबर भी पढ़ें…

गवर्नर-प्रेसिडेंट के लिए डेडलाइन पर कानूनी बहस: पूर्व कानून मंत्री बोले- सरकार और अदालतों में टकराव होगा, वकील बोले- मंत्रिपरिषद की सलाह पर ही चलेगा राष्ट्रपति

प्रेसिडेंट और गवर्नर के लिए डेडलाइन बनाने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर कानून बहस शुरू हो गई है। पूर्व कानून मंत्री अश्विनी कुमार ने कहा- इससे सरकार और अदालतों के बीच टकराव की स्थिति पैदा हो सकती है, जिसे सुलझाना जरूरी है। उम्मीद है कि सुप्रीम कोर्ट की बेंच इस पर स्पष्ट राय देगी। पूरी खबर पढ़ें…

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Author: Source :www.bhaskar.com

Publish Date: 2025-07-23 05:35:13

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