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Burhanpur Tajiya: भारत विविधताओं का देश है, आए दिन कई ऐसे किस्से सुनने को मिल जाते हैं जो इस वाक्ये को सच कर जाते हैं. आइए जानते हैं ऐसी ही एक कहानी के बारे में…
हाइलाइट्स
- बुरहानपुर में हिंदू परिवार ताजिया बैठाता है.
- पांच पीढ़ियों से निमाड़कर परिवार सेवा कर रहा है.
- मोहर्रम में 10 दिन तक पूजा और दुआ होती है.
मोहन ढाकले, बुरहानपुर: मध्य प्रदेश एक ऐसा राज्य है जहां पर सभी त्योहार- पर्व सभी समुदाय के लोग मिलजुलकर मनाते हैं. मध्य प्रदेश के बुरहानपुर जिले के शिकारपुरा क्षेत्र में भी पांच पीढ़ियों से अशोक निमाड़कर का परिवार सवारी बैठा कर पूजा अर्चना और दुआ करने का काम करता है. उनका कहना है कि हमारी पांचवीं पीढ़ी सेवा कर रही है धर्मेंद्र निमाड़कर बताते हैं कि हमारे दादा को यह बावड़ी में मिले थे. जिसके बाद से हमने उनकी सेवा शुरू कर दी है. मोहर्रम में हम सवारी बैठाते हैं ताजिए भी हमारे दादा कल्लू बटाना ने सबसे पहले बुरहानपुर में बनाया था. हम आज भी ताजिया बनाते हैं हमारे यहां पर लोग शादी विवाह बच्चों के लिए मन्नत मांगने के लिए भी आते हैं, और इन सभी की मन्नते पूरी भी होती है. यहां पर लोग सिरनी का प्रसाद चढ़ाते हैं.परिवार ने दी जानकारी
लोकल 18 की टीम ने जब परिवार के धर्मेंद्र निमाड़कर से बात की तो उन्होंने बताया कि हमारी पांचवीं पीढ़ी सवारी बैठा कर सेवा कर रही है. हमारे परदादा को बावड़ी में यह मिले थे तब से लेकर हमारे द्वारा आज तक उनकी सेवा की जा रही है. मोहर्रम जैसे ही शुरू होते हैं तब से लेकर तो हम 10 दिनों तक पूरा पालन करते हैं और हमारे यहां पर सवारी भी बैठाई जाती है सुबह-शाम दोनों समय हम दुआ करते हैं देश दुनिया और जिले में सुख शांति की कामना भी की जाती है.
लोकल 18 की टीम ने जब परिवार के धर्मेंद्र निमाड़कर से बात की तो उन्होंने बताया कि हमारी पांचवीं पीढ़ी सवारी बैठा कर सेवा कर रही है. हमारे परदादा को बावड़ी में यह मिले थे तब से लेकर हमारे द्वारा आज तक उनकी सेवा की जा रही है. मोहर्रम जैसे ही शुरू होते हैं तब से लेकर तो हम 10 दिनों तक पूरा पालन करते हैं और हमारे यहां पर सवारी भी बैठाई जाती है सुबह-शाम दोनों समय हम दुआ करते हैं देश दुनिया और जिले में सुख शांति की कामना भी की जाती है.
जिले में सबसे पहले हमारे परिवार ने बैठाया था ताजिया
अशोक निंबालकर बताते हैं की सबसे पहले हमारे दादा कल्लू बटाना के द्वारा बुरहानपुर जिले में ताजिए बैठने की शुरुआत की गई थी इन्होंने ही सबसे पहले ताजा बनाया था जिसकी हाइट 3 फीट की थी तब से लेकर आज तक भी हमारे द्वारा हमारे घर में ताजिया भी बैठाया जाता है हर साल हम ताजिया बनाते हैं.
अशोक निंबालकर बताते हैं की सबसे पहले हमारे दादा कल्लू बटाना के द्वारा बुरहानपुर जिले में ताजिए बैठने की शुरुआत की गई थी इन्होंने ही सबसे पहले ताजा बनाया था जिसकी हाइट 3 फीट की थी तब से लेकर आज तक भी हमारे द्वारा हमारे घर में ताजिया भी बैठाया जाता है हर साल हम ताजिया बनाते हैं.