दरअसल, प्राचीन रोम में टैक्स सिस्टम में चार मुख्य स्तंभ शामिल थे, जिसमें पशुधन कर, भूमि कर, सीमा शुल्क और व्यावसायिक आय पर टैक्स लगता था. लेकिन बाद में रोमन के कई सम्राट इतने पर ही नहीं रुके. उन्होंने विधवाओं और अनाथों पर भी टैक्स लगाया, साथ ही उन गुलाम मालिकों पर भी, जो अपने दासों को आज़ाद करते थे. लेकिन इन शुल्कों में से सबसे असामान्य और यादगार था यूरीन टैक्स (urine tax). पहली शताब्दी ईस्वी में सम्राट वेस्पासियन द्वारा पेश किया गया यह बदबूदार, लेकिन लाभदायक टैक्स न केवल शाही खजाने को भरने में मदद करता था, बल्कि इसने इतिहास के सबसे लोकप्रिय वित्तीय मुहावरों में से एक को भी जन्म दिया, “पेकुनिया नॉन ओलेट” यानी “पैसे में बदबू नहीं होती.” बता दें कि प्राचीन रोमनों के लिए मूत्र सिर्फ एक अपशिष्ट नहीं, बल्कि इससे कहीं अधिक उपयोगी और मूल्यवान वस्तु थी. अमोनिया से भरपूर होने के कारण इसमें कई रासायनिक गुण थे, जो इसे कई उद्योगों में महत्वपूर्ण बनाते थे. चर्मकार इसका उपयोग जानवरों की खाल को नरम और अधिक लचीला बनाने में करते थे, तो धोबी ऊनी कपड़ों और ब्लीच के लिए इसका उपयोग करते थे. इन कपड़ों को बासी मूत्र के बड़े-बड़े बर्तनों में भिगोया जाता था और फिर गंदगी और तेल को निकालने के लिए श्रमिकों द्वारा रौंदा जाता था.
साबुन के बिना एक युग में अमोनिया एक प्राकृतिक डिटर्जेंट के रूप में कार्य करता था, कपड़ों को सफेद करता था और उनकी दुर्गंध दूर करता था. मूत्र ने रंगाई में भी भूमिका निभाई, जहां इसने वस्त्रों पर रंगों को स्थिर करने में मदद की. शायद सबसे आश्चर्यजनक और परेशान करने वाला उपयोग मुंह के अंदर की सफाई में था. कुछ रोमनों का मानना था कि मूत्र दांतों को सफेद कर सकता है और कभी-कभी इसका उपयोग माउथवॉश के रूप में भी करते थे. इतने सारे उपयोग की वजह से सार्वजनिक मूत्रालय कारीगरों और व्यापारियों के लिए एक महत्वपूर्ण संसाधन बन गए. इस अवसर को भांपते हुए सम्राट वेस्पासियन (जिन्होंने 69 से 79 ईस्वी तक शासन किया) ने इन सार्वजनिक शौचालयों से मूत्र के संग्रह पर टैक्स लगाया. जो लोग व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए इसे इकट्ठा करते थे, उन्हें राज्य को शुल्क देना पड़ता था. यह गृह युद्ध और रोम के महंगे पुनर्निर्माण के बाद राजस्व उत्पन्न करने के लिए एक व्यावहारिक कदम था, लेकिन इसे सराहा नहीं गया.
रोमन इतिहासकार सुएटोनियस के अनुसार, वेस्पासियन के बेटे टाइटस ने इस टैक्स का विरोध करते हुए आपत्ति जताई थी. उन्हें मानव अपशिष्ट से लाभ कमाने का विचार अशोभनीय लगा. जवाब में सम्राट वेस्पासियन ने अनोखे अंदाज में अपने बेटे टाइटस को सबक सीखाया. उन्होंने अपने बेटे की नाक पर एक सिक्का रखा और पूछा कि क्या उसमें बदबू आ रही है? जब टाइटस ने जवाब दिया कि नहीं, तो सम्राट ने पलटवार करते हुए कहा, “फिर भी यह मूत्र से आया है.” इसी के साथ “पेकुनिया नॉन ओलेट” मुहावरा आया, जिसका शाब्दिक अर्थ है, “पैसे में बदबू नहीं आती.” यह कहावत याद दिलाता है कि पैसे का मूल्य कभी दूषित नहीं होता है. आश्चर्यजनक रूप से यूरीन टैक्स की विरासत आज भी कायम है. फ्रांस में सार्वजनिक मूत्रालयों को ऐतिहासिक रूप से वेस्पासिएनेस (vespasiennes) के नाम से जाना जाता था, जो उस सम्राट को श्रद्धांजलि देने जैसा है. इतना ही नहीं, वाक्यांश “पेकुनिया नॉन ओलेट” आधुनिक शब्दकोश का हिस्सा बना हुआ है, जिसका उपयोग यह व्यक्त करने के लिए किया जाता है कि पैसा चाहे कैसे भी कमाया गया हो, उसका मूल्य बना रहता है.
Author: Niranjan Dubey Source Link :https://hindi.news18.com/news/ajab-gajab/off-beat-roman-emperor-vespasian-urine-tax-history-pecunia-non-olet-strange-ancient-revenue-unusual-taxes-history-bizarre-tax-ajab-gajab-knowledge-9380531.html
Publish Date: 2025-07-09 13:02:42