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देहरादून. उत्तराखंड में हर्षिल जैसे इलाकों में सेब के साथ ही अब चेरी की खेती भी जोर पकड़ रही है. वहीं, अल्मोड़ा के चौबटिया गार्डन में चेरी के लिए एक खास मदर ब्लॉक तैयार किया गया है, जिसमें गर्वनर बुड, ब्लैक हार्ट, स्ट्रैला, न्यूरो ड्यूरो और चौबटिया बिग जैसी बेहतरीन प्रजातियों के पौधे लगाए जाते हैं. सेहत से भरपूर यह फल औषधीय गुणों के चलते लोगों की पसंद बनता जा रहा है.
उत्तराखंड की राजधानी देहरादून की रहने वाली आयुर्वेदिक चिकित्सक डॉ. शालिनी जुगरान ने बताया कि चेरी को नेपाली और कुमाऊँनी में “पैयुँ” कहा जाता है. चेरी, जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में ज्यादा ऊंचाई वाले क्षेत्रों में होता है. इसकी पैदावार मई से जुलाई तक होती है.
डॉ. जुगरान बताती हैं कि चेरी, अर्थराइटिस और गाउट यानी गठिया के दर्द को कम करती है. इसके साथ ही यह अनिद्रा और बेचैनी जैसी परेशानियों को भी दूर करती है.
चेरी थोड़ी खट्टी-मीठी सुगंध के साथ-साथ पोषक तत्वों, एंटीऑक्सीडेंट और औषधीय गुणों से भरपूर मानी जाती है. इन्हें प्राचीन काल से ही कई बीमारियों के इलाज के लिए प्रयोग किया जाता रहा है.
चेरी, एंटीऑक्सीडेंट का भंडार मानी जाती है। इसमें एंथोसायनिन, फ्लेवोनोइड्स और कैरोटीनॉयड जैसे पावरफुल एंटीऑक्सीडेंट सही मात्रा में होते हैं. ये यौगिक बॉडी में नुकसानदेह मुक्त कणों (free radicals) को बेअसर करने में मददगार होते हैं, जो कोशिका क्षति और ऑक्सीडेटिव तनाव का कारण बन सकते हैं.
चेरी में पाए जाने वाले तत्व कई पुरानी बीमारियों, जैसे हृदय रोग, कैंसर और न्यूरोडीजेनेरेटिव विकारों से जुड़ा ऑक्सीडेटिव तनाव को कम करते हैं. इसका नियमित सेवन इन बीमारियों के जोखिम को कम कर सकता है.
चेरी में एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण पाए जाते हैं, खासकर एंथोसायनिन की उच्च सांद्रता के कारण. ये यौगिक शरीर में सूजन को कम करने में सहायता करते हैं, जो गठिया, गाउट और मांसपेशियों के दर्द जैसी परेशानियों से राहत देते हैं.
बेहतर नींद के लिए चेरी मददगार मानी जाती है. यह खट्टी होती है जिसमें मेलाटोनिन को सही करता है. मेलाटोनिन एक हार्मोन है जो सोने-जागने के चक्र को नियंत्रित करता है. इसलिए जो लोग अनिद्रा से पीड़ित हैं, वे लोग सोने से पहले मुट्ठीभर चेरी या चेरी का जूस पीते हैं तो उन्हें अच्छी नींद आती है. इसके साथ ही यह स्किन के लिए भी फायदेमंद मानी जाती है.